Friday, February 26, 2010

Khuda

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाजी देखी मैंने...

काले घर में सूरज रखके
तुमने शायद सोचा था मेरे सब मुहरें पिट जाएँगे
मैंने एक चिराग जला कर अपना रास्ता खोल दिया
तुमने एक समंदर हाथ में लेकर मुझ पर ढेल दिया
मैंने नूर की कश्ती उसके ऊपर रख दी
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़ के लमहा-लमहा जीना सीख लिया
मेरी ख़ुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया
मौत की शह देकर तुमने समझा था अब तो मात हुई
मैंनें जिस्म का खोल उतार कर सौंप दिया और रुह बचा ली

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाजी...

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